वित्त वर्ष 2022-23 का जो बजट आया है, उसने किसान समुदाय को निराश ही किया है।
एक साल से भी ज्यादा चले किसान आंदोलन के खत्म होने के बाद उम्मीद बनी थी कि केंद्र सरकार आगामी बजट में किसानों के उद्धार के लिए कुछ तो ऐसे कदम उठाएगी जिनसे वाकई उनका भला हो। पर वित्त वर्ष 2022-23 का जो बजट आया है, उसने किसान समुदाय को निराश ही किया है। कहने को बजट में सरकार ने कृषि क्षेत्र के लिए ऐसे नए कदमों का एलान किया है, जिनसे लग रहा है कि उसका जोर कृषि क्षेत्र को आधुनिक बनाने पर कहीं ज्यादा है। किसानी को उच्च तकनीक यानी हाईटेक सुविधाएं मुहैया करवाने की बात कही गई है। जैसे खेती में ड्रोन का इस्तेमाल। आने वाले वक्त में किसान खेतों में फसलों की निगरानी और उन पर कीटनाशकों के छिड़काव जैसे काम के लिए ड्रोन का उपयोग कर सकेंगे। खेती और इससे जुड़े उद्योगों को डिजिटल तकनीक से संपन्न किया जाएगा।
खेती में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाने की कोशिश स्वागतयोग्य है और इसकी जरूरत से इनकार किया भी नहीं जा सकता। लेकिन ड्रोन का इस्तेमाल कितने किसान कर पाएंगे, यह भी देखना होगा। देश में छोटे और सीमांत किसानों की आबादी अस्सी फीसद से ज्यादा ही है। किसानों का यह तबका जिन मुश्किल हालात में खेती करता है, वह किसी से छिपा नहीं है। बीज, खाद से लेकर सिंचाई के लिए पानी और बिजली जैसी समस्याएं कहीं ज्यादा बड़ी और गंभीर हैं। ऐसे में किसान आधुनिक तकनीक को कितना अपना पाएगा, यह कम बड़ा सवाल नहीं है।
जिन किसानों की माली हालत ही खराब है, वे ड्रोन जैसी तकनीक खरीदने या उसके इस्तेमाल के बारे में तो सोच भी नहीं सकते। आज भी ऐसे गांवों की संख्या कम नहीं है जहां इंटरनेट, कंप्यूटर जैसी बुनियादी सुविधाएं तक नहीं पहुंची हैं। ऐसे में कैसे किसान डिजिटलीकरण का लाभ उठा पाएंगे? गांवों में कृषि उत्पादों का कारोबार कैसे जोर पकड़ेगा? किसानों को आधुनिक तकनीक से युक्त करने से पहले उनकी बुनियादी समस्याओं पर गौर करना कहीं ज्यादा जरूरी है। मुश्किल यह है कि देश का अन्नदाता ही सबसे गरीबी की हालत में है। ऐसे में क्या उन प्रयासों पर विचार नहीं होना चाहिए जो किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में मददगार साबित हों?
सरकार कृषि और किसान के उत्थान के लिए जैसे लंबे-चौड़े दावे करती रही है, उसकी हकीकत प्रस्तावित बजट से पता चल जाती है। वर्ष 2021-22 के बजट में कृषि क्षेत्र के लिए 1.23 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान था, जिसे संशोधन के बाद 1.18 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया था। इस बार बजट में 1.24 लाख करोड़ रुपए रखे गए हैं। यानी एक फीसद से भी कम बढ़ोतरी! ऐसे में किसान को हाईटेक बनाने का सपना कैसे पूरा होगा, सोचने की बात है। हैरानी यह है कि कीटनाशकों पर जीएसटी अभी अठारह फीसद है, जिसे किसान पांच फीसद करने की मांग कर रहे हैं।
किसान आंदोलन की एक बड़ी मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी को कानूनी रूप देने की थी, पर बजट में इसका कहीं कोई संकेत नहीं है। आज भी गन्ना किसान अपने बकाया पैसे के लिए भटक रहे हैं। उन्हें उम्मीद थी कि महामारी संकट को देखते हुए किसान सम्मान निधि का पैसा बढ़ाया जाएगा, पर बजट में इसके लिए भी कुछ नहीं कहा गया। साल 2022 तक किसानों की आय दो गुनी करने का वादा कैसे पूरा होगा, कोई नहीं जानता। डीजल, रासायनिक खाद और कीटनाशकों के बढ़ते दाम कहीं ज्यादा बड़े मुद्दे हैं जो तत्काल समाधान मांगते हैं। किसान कर्ज लेकर खेती करे, अपने पैरों पर खुद ही खड़ा हो जाए, तकनीक पर खर्च कर ले, अब इस सोच से तो निकलना होगा।
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संपादक- भोमसिंह राजपुरोहित
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