वो वक्त था जब नवजात लोकतंत्र लड़खड़ा रहा था. आजाद भारत अपने कदमों पर चलना सीख रहा था. विभाजन की जो आग बुझती हुई दिख रही थी. असल में इतिहास का वो आखिरी खूनी पन्ना लिखा जाना बाकी था. ये 30 जनवरी 1948 का दिन था. इस दिन शुक्रवार था.
ये वो वक्त था जब नवजात लोकतंत्र लड़खड़ा रहा था. आजाद भारत अपने कदमों पर चलना सीख रहा था. विभाजन की जो आग बुझती हुई दिख रही थी. असल में इतिहास का वो आखिरी खूनी पन्ना लिखा जाना बाकी था. ये 30 जनवरी 1948 का दिन था. इस दिन शुक्रवार था. महात्मा गांधी उस दिन दिल्ली में थे. बिड़ला हाउस (Birla House) में अपने दिन की शुरुआत सुबह साढ़े 3 बजे की. उसके बाद दैनिक क्रिया से निवृत होक प्रार्थना की. उनकी पोती आभा और मनुबेन हर वक्त उनके साथ साए की तरह रहती थी. लेकिन उस दिन आभा जागी नहीं थी. वो सो रही थी.
कुछ स्त्रोत ये बताते है कि आभा के नींद से न जागने से बापू नाराज थे. और उन्हौने ये नाराजगी मनुबेन से साझा भी की थी. क्योंकि ठीक दो दिन बाद सेवाग्राम दौरे पर जाना था.दो फरवरी को होने वाले इस दौरे की सारी व्यवस्थाएं भी देखनी थी. प्रार्थना कार्यक्रम से फ्री होकर 6 बजे बापू फिर सोने चले गए. 8 बजे उठने के बाद नाश्ता किया. उस दिन नाश्ते में उबली सब्जियां, बकरी का दूध, टमाटर और मूली खाई. इसके अलावा संतरे का रस भी पिया. बंटवारे के बाद देश में जो हालात बने. उससे दिल्ली बहुत प्रभावित हुई. बड़ी संख्या में शरणार्थी दिल्ली में डेरा डाले हुए थे. तो दोनों तबकों के बीच नाराजगी भी चरम पर थी. लिहाजा गांधी इन चीजों से परेशान रहते थे. शायद यही वजह थी. कि उस दिन गांधीजी ने कागजी कार्रवाई में भी ज्यादा रुची नहीं दिखाई. उनके करीबियों के संस्मरणों के आधार पर जो जानकारियां लिखी गई है. उसके मुताबिक उस दिन गांधीजी की आरके नेहरु से मुलाकात हुई थी. गांधीजी से रोज कई लोग मिलने आते थे. तब तक गांधीजी के घर की सुरक्षा भी बढ़ाई जरुर गई थी. क्योंकि इससे ठीक 10 दिन पहले यानि 20 जनवरी के दिन ही प्रार्थना सभा में धमाका भी हुआ था. इन दिनों लोगों से मुलाकातों के वक्त गांधीजी अक्सर ये कहते थे कि “अगर लोगों ने मेरी सुनी होती तो ये सब नहीं होता. मेरा कहा लोग मानते नहीं”.
30 जनवरी के दिन ही दिन में करीब 4 बजे महात्मा गांधी ने उस वक्त के गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल से मुलाकात की थी. ये मुलाकात चार बजे हुई थी. और इसके ठीक बाद यानि 5 बजे उन्हैं प्रार्थना सभा में जाना था. लेकिन महात्मा गांधी और सरदार पटेल (Sardar Patel) के बीच देश के तमाम मुद्दों पर 5 बजकर 10 मिनट तक बातचीत चलती रही. यहां से वो सीधे प्रार्थना सभा के लिए निकल गए. करीब पंद्रह मिनट देरी से उस दिन गांधीजी प्रार्थना सभा में पहुंचे थे. प्रार्थना सभा में जब वो अपने आसन की तरफ जा रहे थे. तो इसी दौरान उनकी दोनों तरफ खड़े लोग उनको नमस्कार कर रहे थे. इसी भीड़ के बीच एक शख्स था. जिसका नाम था नाथूराम गोडसे. उसकी जेब में एक रिवॉल्वर थी. उसने गांधीजी को नमस्कार किया. और फिर उन पर गोलियां चला दी. जिसके बाद उनकी मौत हो गई.
नोट- ये जानकारी mkgandhi.org से ली गई है. जहां महात्मा गांधी के निजी सचिव वी कल्याणम के शब्दों पर आधारित जानकारी लिखी गई है.
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