meta content='A blog About national and internationl news with print media' name='description'/> meta content='blue city express,rajasthani news,rajasthan news,blue city express,jodhpur news,india news,delhi news,barmer news,jaiselmer news,pali news'name='krywords'/> तकरार में नौकरशाही- भारतीय प्रशासनिक सेवा यानी आइएएस अधिकारियों के प्रतिनियुक्ति संबंधी नियम केंद्र सरकार जिस प्रकार लागू करना चाहती है, उससे केंद्र और राज्यों के बीच विवाद की पूरी आशंका है।

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तकरार में नौकरशाही- भारतीय प्रशासनिक सेवा यानी आइएएस अधिकारियों के प्रतिनियुक्ति संबंधी नियम केंद्र सरकार जिस प्रकार लागू करना चाहती है, उससे केंद्र और राज्यों के बीच विवाद की पूरी आशंका है।

 

भारतीय प्रशासनिक सेवा यानी आइएएस अधिकारियों के प्रतिनियुक्ति संबंधी नियम केंद्र सरकार जिस प्रकार लागू करना चाहती है, उससे केंद्र और राज्यों के बीच विवाद की पूरी आशंका है। ओड़ीशा, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और झारखंड सहित कई राज्यों की ओर से इस मसले पर विरोध से साफ है कि आइएएस अधिकारियों की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर नए प्रस्ताव को लेकर केंद्र की राह आसान नहीं होगी।

राज्यों के मुताबिक, यह नियम देश के संघीय ढांचे के खिलाफ है। कुछ राज्यों की प्रतिक्रिया से यही धारणा बनी है कि एक बार अगर नया नियम लागू हो गया तो यह राज्यों के प्रशासन के साथ-साथ विभिन्न विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन को प्रभावित करेगा। ऐसी आशंकाएं भी जाहिर की गई हैं कि इस नियम से अधिकारियों के बीच डर पैदा होगा, ये बदलाव केंद्र और राज्य सरकारों के लिए निर्धारित संवैधानिक अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन करेंगे और अफसरों के बेखौफ या ईमानदारी से काम करने की भावना को कम करेंगे; इससे राज्यों की प्रशासनिक व्यवस्था चरमरा सकती है।

हालांकि इस पर केंद्र सरकार ने कहा है कि चूंकि राज्य प्रतिनियुक्ति के लिए पर्याप्त संख्या में आइएएस अधिकारियों को नहीं भेज रहे हैं, इसलिए केंद्रीय स्तर पर प्रशासनिक कामकाज प्रभावित हो रहा है। मगर प्रस्तावित संशोधन पर केंद्र और राज्यों के बीच जिस तरह की खींचतान सामने आई है, उससे यही लगता है कि इस मुद्दे पर कदम आगे बढ़ाने के संदर्भ में संभवत: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच पर्याप्त बातचीत नहीं हुई और पहले सहमति बनाने की कोशिश नहीं की गई।

संभव है कि केंद्र की इस शिकायत का कोई मजबूत आधार हो कि प्रतिनियुक्ति के लिए आइएएस अधिकारियों की कमी से केंद्रीय कामकाज पर असर पड़ रहा है, लेकिन क्या इस पहलू पर भी गौर करने की कोशिश की गई कि राज्यों में प्रशासनिक कामकाज में जिम्मेदारी के अनुरूप स्वरूप क्या है, उसमें इन अफसरों की कितनी जरूरत है, उसके मुकाबले उपलब्धता क्या है और बहाली के लिए पदों से लेकर रिक्तियों की तस्वीर क्या है? इसके अलावा, राज्यों की ओर से इस प्रस्ताव के जरिए बनने वाले जिन दबावों की आशंका जताई गई है, क्या वे पूरी तरह निराधार हैं!

जाहिर है, इस सवाल पर स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए कि अगर केंद्र में संयुक्त सचिव स्तर तक आइएएस अफसरों का प्रतिनिधित्व घट रहा है और सेवा के लिए राज्यों की ओर से प्रायोजित अधिकारियों की संख्या बहुत कम है, तो इसके लिए कौन और कैसी परिस्थितियां जिम्मेदार हैं! कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग यानी डीओपीटी ने आइएएस (कैडर) नियम, 1954 में बदलाव का जो प्रस्ताव दिया है, उसके तहत केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर अधिकारियों की मांग के लिए केंद्र के अनुरोध को रद्द करने वाली राज्यों की शक्ति छिन जाएगी।

अगर व्यवहार में प्रस्तावित संशोधन का ऐसा असर होगा तब निश्चित रूप से यह सभी पक्षों के लिए विचार करने का विषय है कि कहीं इसका विस्तार संघीय तानाबाना और संविधान के मूलभूत ढांचे तक तो नहीं होगा, जिसकी आशंका राज्यों की ओर से जताई जा रही है। खासकर अगर किसी राज्य की चुनी हुई सरकार के खिलाफ केंद्र नौकरशाही को हथियार बनाता है, तब इस पर गंभीर सवाल उठेंगे। यह ध्यान रखने जरूरत है कि अगर इस मसले पर केंद्र और राज्यों के बीच दरार आने की स्थितियां पैदा होती हैं, तो इससे संघीय ढांचा और लोकतंत्र के स्वरूप को लेकर चिंता पैदा होगी।

#bluecityexpress

संपादक- भोमसिंह राजपुरोहित

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