आयुर्वेद चिकित्सा में अर्जुन का औषधि के रुप में ही इस्तेमाल सदियों से किया जाता रहा है। हृदय को पोषण पहुंचाने वाले द्रव्य हृद्य कहे जाते हैं हृद्य द्रव्यों में अर्जुन का विशेष स्थान है। सभी मनीषियों ने अर्जुन का उल्लेख अपने ग्रंथों में किया है। अर्जुन (टर्मिनेलिया अर्जुना) कॉम्ब्रेटेसी परिवार से संबंधित है। अर्जुन विभिन्न गंभीर रोगों के उपचार के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सा में सबसे स्वीकृत और लाभकारी औषधीय पौधों में से एक है।
# आयुर्वेदानुसार अर्जुन कषाय, तिक्त रस, लघु , रुक्ष गुण, कटु विपाक, शीत वीर्य व हृद्य प्रभाव से युक्त होता है। अर्जुन-त्वक वर्ण रोधक, कफ, पित्त, मूत्रल, पाण्डु रोग, तृषा नाशक, मेदो वृद्धि, श्वास, हृदय रोग, दाह, स्वेदाधिक्य नाशक होता है।
# रासायनिक संगठन की दृष्टि से अर्जुन की छाल में बीटा साइटोस्टेरॉल, अर्जुनिक अम्ल, फ्रीडेलीन, ट्राइटरपीनोइड्स, फ्लेवोनोइड्स और ग्लाइकोसाइड्स पाए जाते हैं, अर्जुनिक अम्ल ग्लूकोज के साथ एक ग्लूकोसाइड बनाता है, जिसे अर्जुनेटिक कहा जाता है । इसके साथ छाल का 20 से 25 प्रतिशत भाग टैनिन्स से बनता है, जिसमें पायरोगेलाल व केटेकॉल दोनों ही प्रकार के टैनिन होते हैं। इसकी राख में कैल्शियम कार्बोनेट लगभग 34 प्रतिशत की मात्रा में होता है । अन्य क्षारों में सोडियम, मैग्नीशियम व अल्युमीनियम प्रमुख है।
आधुनिक नैदानिक अनुसंधान की दृष्टि से अर्जुन कैल्शियम सोडियम घटकों की प्रचुरता के कारण ही यह हृदय की मांस पेशियों में सूक्ष्म स्तर पर कार्य करता है।
ट्राइटरपीनोइड्स, फ्लेवोनोइड्स घटकों को एंटीऑक्सीडेंट और कार्डियोवैस्कुलर गुणों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। अर्जुन की छाल के घनसत्व को इस्केमिक कार्डियो मायोपैथी, एनजाइना पेक्टोरिस, कंजेस्टिव हृदय विफलता, हल्के उच्च रक्तचाप और डिस्लिपिडेमिया में काफी उपयोगी पाया गया है। अनुसंधान से सिद्ध हुआ है कि इससे हृदय की पेशियों को बल मिलता है, स्ट्रोक वाल्यूम तथा कार्डियक आउटपुट बढ़ता है, स्पन्दन ठीक व सबल होता है तथा हृदय सशक्त व उत्तजित होता है । इनमें रक्त स्तंभक व प्रतिरक्त स्तंभक दोनों ही गुण पाए जाते हैं। खनिज लवणों के सूक्ष्म रूप में उपस्थित होने के कारण यह एक तीव्र हृत्पेशी उत्तेजक है। अपने डाईयूरेटिक गुणों के कारण छाल का चूर्ण उच्च रक्तचाप में लाभ करता है।
# आयुर्वेदिक चिकित्सा में अर्जुन का विभिन्न नैदानिक स्थितियों में उपयोग किया जाता है।
व्रण रोपण (घाव भरने में): अर्जुन की छाल के काढ़े से घावों को धोने से घाव जल्दी भरते हैं।
कर्ण शूल (कान के दर्द में): अर्जुन के पत्तों का रस कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है।
त्वचा रोग के लिए: अर्जुन के कवाथ से स्नान करने से त्वक रोग दूर होता है।
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