भारत में थोक महंगाई यानी थोक मूल्य सूचकांक नवंबर में 14.23 फ़ीसदी हो गया. अक्टूबर में यह दर 12.54 फ़ीसदी थी. कहा जा रहा है कि सब्ज़ियों और पेट्रोलियम उत्पादों की क़ीमतों में बढ़ोतरी के कारण ऐसा हुआ है.
भारत में पिछले लगातार आठ महीने से थोक महंगाई दर दोहरे अंकों में है. महंगाई में यह बढ़ोतरी तेल पर उत्पाद शुल्क में कटौती के बावजूद है. पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने ट्वीट कर मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है, ''एक और साल का अंत मोदी सरकार के उपहार के साथ हो रहा है. थोक महंगाई दर 14 फ़ीसदी पार हो गई है.''
सबसे दिलचस्प है कि थोक महंगाई और खुदरा महंगाई में बहुत फ़र्क है. नंवबर में खुदरा महंगाई दर 4.91 प्रतिशत है. खुदरा महंगाई तीन महीने की सबसे ऊंचाई पर है. थोक महंगाई 2011-12 के बाद से सबसे ऊंचाई पर है. थोक महंगाई की बढ़ने की रफ़्तार पिछले 30 सालों में सबसे तेज़ है. थोक महंगाई और खुदरा महंगाई में इतना फ़र्क़ क्यों है?
कहा जा रहा है कि महंगाई का गणित जटिल होता जा रहा है. सरकारी आँकड़ों की महंगाई और ग्राहकों के सामने की महंगाई में फ़र्क़ होता है. खुदरा महंगाई में खाद्य उत्पादों का योगदान ज़्यादा है और इनकी क़ीमतें कम होती हैं तो खुदरा महंगाई कम दिखती है. खुदरा महंगाई में सब्ज़ियों और अन्य खाद्य सामग्रियों की क़ीमतें कम हैं, इसलिए यह अंतर दिखता है.
थोक महंगाई मैन्युफैक्चरिंग की चीज़ें ज़्यादा होती हैं. स्वास्थ्य और ईंधन की महंगाई का असर सीधा थोक महंगाई दर पर पड़ता है. ओमिक्रॉन के कारण आपूर्ति की दिक़्क़तें आ सकती हैं. थोक महंगाई के भीतर प्राइमरी आर्टिकल यानी वो सारे सामान, जिनके उत्पाद बनते हैं. इन प्राइमरी आर्टिकल की महंगाई दोगुनी बढ़ी है. अब सर्विस सेक्टर में भी महंगाई बढ़ी है. इंटरनेट डेटा और फ़ोन पर बात करना भी महंगा हुआ है.
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